11 April 2011

फैसले की घड़ी (स्तम्भ , दैनिक भास्कर ): वह युवती खुद को कैसे बचाती?

फैसले की घड़ी (स्तम्भ , दैनिक भास्कर ): वह युवती खुद को कैसे बचाती
हाल ही में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने मेक्डॉनल्ड मामले में कहा- किसी भी राज्य या स्थानीय सरकार द्वारा बनाया गया कोई कानून जो अमेरिकी नागरिकों के हथियार रखने के मौलिक अधिकार पर रोक लगाता हो, असंवैधानिक होगा। कोर्ट ने हेलर मामले में आए फैसले के हवाले से कहा- निजी प्रतिरक्षा के लिए हथियार रखने का अधिकार, अमेरिकी संविधान के दूसरे संशोधन से संरक्षित हो चुका है। इसमें ‘निजी प्रतिरक्षा’ ही केंद्र बिंदु है। यहां निजी प्रतिरक्षा के लिए हथियार रखने के अधिकार का अर्थ यह नहीं है कि किसी भी तरीके या प्रयोजन के लिए इसे रखा जा सके। स्कूल, सरकारी संस्थाओं, सार्वजनिक स्थानों और अन्य संवेदनशील जगहों पर हथियार नहीं ले जाया जा सकता। आपराधिक चरित्र वाले और मानसिक तौर पर बीमार लोग भी हथियार नहीं रख सकते। कोर्ट ने दूसरे संशोधन को 14वें संशोधन में अपनाई गई सम्यक प्रक्रिया खंड (देहिक स्वतंत्रता का अधिकार) के परिप्रेक्ष्य में समझने की पेशकश की है। 


हमारी संविधान सभा में भी 1-2 दिसंबर, 1948 को ‘हथियार रखने के अधिकार’ के संदर्भ में चर्चा हुई थी। श्री एचवी कामथ ने प्रारूप संविधान के अनुच्छेद 13 में संशोधन कर खंड एच (हथियार रखने का अधिकार) और खंड 7 (उचित र्निबधन) जोड़े जाने की सिफारिश की थी। (सीएडी, जिल्द-सात, पृष्ठ 718-721)


डॉ. अंबेडकर ने इसे अस्वीकार करते हुए कहा- अगर सभी नागरिकों को हथियार रखने का अधिकार मिल गया तो देश में मौजूद आपराधिक समुदाय व आदतन अपराधी भी हथियार रखने का दावा करेंगे। इसमें परंतुक जोड़कर यह भी नहीं कहा जा सकता कि फलां वर्ग को यह अधिकार नहीं मिलेगा। (पृष्ठ 780-81)


कामथ ने संविधान सभा का ध्यान इस ओर भी खींचा कि 1928 की नेहरू रिपोर्ट और कांग्रेस के कराची अधिवेशन (1931) में इसे मौलिक अधिकार के तौर पर शामिल किए जाने की पेशकश की जा चुकी है, लेकिन हमारे कानून निर्माता आज तक इस पर अधिक विचार नहीं सके हैं।


हाल ही दिल्ली के धौला कुआं इलाके में कॉल सेंटर में काम करने वाली युवती से बलात्कार की दिल दहला देने वाली घटना हुई। प्रश्न उठता है कि जब उस लड़की को कार में अगवा किया जा रहा था तो वह अलसुबह के उस वीराने में शोर मचाने के सिवा खुद को बचाने के लिए क्या कर सकती थी? हमने भारतीय दंड संहिता में ‘निजी प्रतिरक्षा के अधिकार’ को धारा 96 से 106 में संहिताबद्ध तो कर दिया, मगर हथियार से लैस अपराधी का प्रतिकार करने का तरीका नहीं सुझाया। 


डॉ. अंबेडकर के तर्क को अगर ध्यान से समझा जाए तो उनकी चिंता हथियारों के आदतन अपराधियों के हाथों में जाने को लेकर थी। सब जानते हैं कि हमारी सुरक्षा एजेंसियां सालभर में हजारों अवैध हथियार बरामद करती हैं? कई इलाके तो अवैध देसी कट्टे और बंदूकें बनाने के लिए कुख्यात हैं। ये हथियार आम लोगों के खिलाफ ही इस्तेमाल होते हैं तो निहत्था व्यक्ति अपनी सुरक्षा कैसे करे? संविधान के अनुच्छेद 21 के मुताबिक दैहिक स्वतंत्रता हमारा मौलिक अधिकार है, लेकिन रक्षा कैसे होगी? इसका जवाब विधि निर्माता आज तक नहीं दे सके हैं।

आज देश में मौजूद जनप्रतिनिधि और वीआईपी की सुरक्षा के लिए एजेंसियां चौकस रहती हैं। नेताओं को श्रेणीवार सुरक्षा दस्ते मिले हैं। किसी को जेड, किसी को वाई। पर आम आदमी के पास सुरक्षा के लिए कुछ नहीं है। क्या विधि निर्माता, जनतंत्र के ‘जन’ पर विश्वास नहीं करते। लोकतंत्र में सरकार आम नागरिकों से क्यों डरती है, क्यों उन्हें अपनी ही जनता पर विश्वास नहीं है। क्या उनकी लोकप्रियता संदेह के दायरे में नहीं है। अब समय आ गया है जब विधायिका ‘निजी प्रतिरक्षा के लिए हथियार रखने के अधिकार’ को अनुच्छेद 19 का भाग बनाए।


नीलाम्बर झा, विधि विशेषज्ञ
neelamber.jha@gmail.com

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